अवैध उत्खनन के खिलाफ प्रशासन का दोहरा चरित्र, छोटे रेत माफियाओं पर कार्यवाही और रसूखदार रेत ठेकेदारों पर मेहरबानी।

नर्मदा के घाटों पर अवैध रेत उत्खनन के खिलाफ कार्रवाई, लेकिन उठ रहे गंभीर सवाल — क्या प्रशासन की सख्ती सिर्फ छोटे माफियाओं तक सीमित?
भैरूंदा।
नर्मदा नदी के पावन घाटों—सीलकंठ, सातदेव, जहाजपुरा, चरुआ सहित अन्य क्षेत्रों में अवैध रेत उत्खनन के विरुद्ध प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई की है। माइनिंग और राजस्व विभाग की संयुक्त टीम ने मौके पर दबिश देकर दो प्रोक्लेम मशीनें, एक पनडुब्बी मोटर बोट, एक जेसीबी और एक ट्रैक्टर जब्त किए हैं।
हालांकि, इस कार्रवाई के बाद प्रशासन की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। क्षेत्रीय लोगों और सूत्रों के अनुसार, यह सख्ती केवल छोटे रेत माफियाओं पर दिखाई दे रही है, जबकि बड़े खनन ठेकेदारों पर प्रशासन की नजरें अभी भी इनायत बनी हुई हैं।
रेत ठेकेदारों पर मेहरबान प्रशासन?
विशेष रूप से "यूफोरिया माइन्स एंड मिनरल्स कंसोर्टियम प्राइवेट लिमिटेड" जैसी बड़ी कंपनियों पर क्षेत्र में लंबे समय से अवैध उत्खनन और परिवहन के गंभीर आरोप लगे हैं। जाजना, बाबरी, और जहाजपुरा घाटों पर इस कंपनी की गतिविधियों से प्रतिदिन सैकड़ों डंपर रेत भरकर निकल रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि कंपनी द्वारा अवैध रूप से नाके संचालित किए जा रहे हैं, जहाँ गाड़ी मालिकों को फर्जी रॉयल्टी देकर ओवरलोड डंपरों को रवाना किया जा रहा है। इस खेल से शासन को हर महीने करोड़ों रुपये की राजस्व हानि हो रही है।
जहाजपुरा और चरुआ घाट पर दिखावा?
जानकारी के अनुसार, इन घाटों पर की गई कार्रवाई केवल औपचारिकता बनकर रह गई। प्रोक्लेम मशीनें जब्त करने के नाम पर टीम वहां गई, पर उन्हें मौके पर ही छोड़कर लौट आई, क्योंकि संबंधित क्षेत्र कंपनी की लीज पर है। इससे यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या प्रशासन बड़ी कंपनियों के सामने मौन है? क्या अवैध उत्खनन के इस बड़े खेल में मिलीभगत की बू आ रही है?
प्रशासन का पक्ष:
जिला खनिज अधिकारी धर्मेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि “अवैध रेत उत्खनन के विरुद्ध कार्रवाई की गई है और आगे भी जारी रहेगी। प्रोक्लेम मशीनें जब्त की गई हैं और अवैध भंडारण पर भी कार्रवाई होगी।”
तहसीलदार भैरूंदा शौरभ शर्मा ने पुष्टि करते हुए कहा कि “कार्रवाई के तहत दो प्रोक्लेम मशीनें, एक जेसीबी और एक ट्रैक्टर जब्त किए गए हैं।”
लेकिन सवाल अब भी बरकरार हैं:
क्या यह कार्रवाई केवल दिखावे की है?
क्या प्रशासन बड़े रेत ठेकेदारों पर हाथ डालने से कतरा रहा है?
और सबसे अहम — मां नर्मदा को छलनी करने वालों को आखिर कब तक संरक्षण मिलता रहेगा?